काफिर का मतलब हिंदू नहीं बल्कि नास्तिक होता है-आफताब आलम खाँ–
लालचंद्र दुसाध–नाथनगर संतकबीरनगर
महुली स्थित अपने कार्यालय पर सपा नेता आफताब आलम खां नेशनिवार को पत्रकार से बातचीत में कहा कि काफिर का मतलब हिंदू नहीं बल्कि नास्तिक होता है । उन्होंने कहा कि इस्लाम धर्म के अनुसार कुरआन शरीफ किसी इंसान ने नहीं लिखी है बल्कि यह एक आसमानी किताब है जिसे अल्लाह ताला ने जिब्राईल अलेहिस्सलाम से दुनिया में भेजवाई है इसीलिए ताकयामत इसमें ना तो कोई एक सिफर घटा सकता है न तो एक सिफर बढ़ा सकता है बल्कि हमेशा हमेश व सदैव इकशां रहेगी l बहरहाल इस तरह की व्याख्या करने का अधिकार हर आदमी को नहीं बल्कि आलिम को है | क्योंकि वह बखूबी इसका सार जानता है कि कौन सी बात किस मौके पर कहाँ और कब कही गयी है | आम आदमी को कुरआन शरीफ की व्याख्या करने की इस्लाम धर्म में सख्ती से मनाही है । उक्त विचार सपा के वरिष्ठ नेता एवं जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष आफताब आलम खाँ नें महुली स्थित अपने जन सम्पर्क कार्यालय पर एक प्रेस वार्ता के दौरान व्यक्त किया |
श्री खां ने आगे कहा की कुरआन शरीफ और इस्लाम धर्म हमें घृणा व नफरत का नहीं बल्कि इंसानियत,मानवता,भाईचारा और मोहब्बत का पैग़ाम देता है । कुरआन शरीफ एक धार्मिक किताब है यह राजनीति करने के लिए नहीं है | कुरआन शरीफ का तर्जुमा आम आदमी को करने की मनाही के बावजूद लोग अपने अपने राजनैतिक लाभ के लिए व्याख्या कर भाईचारा को समाप्त करने व समाज में नफरत पैदा करने का काम करने की कोशिश कर रहे हैं । कुछ लोग काफिर का मतलब हिंदू बताते हैं जबकि काफिर का मतलब हिन्दू नहीं बल्कि नास्तिक होता है । जिसकी आस्था मालिक व किसी धर्म में तथा धार्मिक किताब में ना हो । दुनिया में जितने भी धर्म हैं व धार्मिक किताबे हैं । सब हमें नफरत व घृणा नहीं बल्कि इंसानियत व भाईचारा का उपदेश देती हैं।